छः चक्र की समझ

हर व्यक्ति की आत्मा शरीर व्यापी है। आत्म प्रदेश दीपक के प्रकाश की भांति शरीर को पाकर कम ज्यादा जगह में रहते है। शरीर में आत्मा के प्रदेश मर्म स्थानों में सबसे अधिक है ।

 मनुष्य के शरीर में ७ मर्म स्थान है। इस स्थानों को शास्त्रीय परिभाषा में षट्चक्र एवं सातवाँ स्थान ब्रह्मरंध्र अथवा सहस्रार के नाम से जाना जाता है ।

शरीर में षट् चक्र एवं ब्रह्मरंध इस प्रकार है।

  1. गुदा में मूलाधार चक्र
  2. नाभि से चार अंगुल नीचे स्वाधिष्ठान चक्र
  3. नाभी में मणिपुर चक्र
  4. हृदय में अनाहत चक्र
  5. कंठ में विशुद्ध चक्र
  6. भ्रूमध्य में आज्ञा चक्र
  7. मस्तिक में ब्रह्मरंध्र

मस्तिक में ब्रह्मरंध

अगर मनुष्य के हाथ पैर वगेरे में गोली या प्रहार लगे तो मनुष्य जिंदा रह सकता है लेकिन इन सातों स्थान में अगर प्रहार या गोली लगे तो मनुष्य की मृत्यु हो जाती है । क्यों कि इन स्थानों में आत्म प्रदेश खूब ज्यादा होते है ।

आध्यात्मिक दृष्टि से ये सातों स्थान आत्म प्रदेश अधिक

होने की वजह से आराधना के लिए खूब अनुकूल है । इन

स्थानों में किया गया ध्यान खूब फलप्रद बनता है ।

उदाहरण की तौर पर लोगस्स सत्र में २४ तीर्थंकर भगवंतों के नाम है उनको अगर इन चक्रों में न्यास करके गिना जाय तो साडे तीन वलय होते है, जो खूब रहस्यात्मक है । वह इस मूलाधार (गुदा) प्रकार है :-

प्रथम वलय

ब्रह्मरंध्र (मस्तिक) में – लोगस्स की प्रथम गाथा

मूलाधार (गुदा) में  – उसभ

स्वाधिष्ठान (लिंग) में – अजिअं च वंदे

मणिपुर (नाभी) में – संभव

 अनाहत (हृदय) में – अभिनंदणं च

 विशुद्ध (कंठ) में – सुमइं च

आज्ञा (भ्रूमध्य) में – पउमप्पहं

ब्रह्मरंध्र (मस्तिक) में – सुपासं

करोड़ रज्जु में – जिनं च

दूसरा वलय

मूलाधार (गुदा) में – चंदप्पहं वंदे

 स्वाधिष्ठान (लिंग) में – सुविहिं च पुत्कदंतं

मणिपुर (नाभी) में – सीयल

उसके बाद

अनाहत (हृदय) में – ५ वीं गाथा एवं मए अभिथुआ

विशुद्ध (कंठ) में – ६ ठी गाथा कित्तिय वंदिय…

आज्ञा (भूमध्य) में  – ७ वीं गाथा की एक पंक्ति अथवा

                            पूर्ण चंदेसु निम्मलयारा…

बार बार इस प्रकार प्रभु का न्यास करने से चक्र विशुद्ध बनते है । आत्मा का शुद्धि करण होता है ।

इसी प्रकार अर्ह, ह्रीँ, ॐ आदि किसी भी इष्ट मंत्र का ध्यान इन चक्रों में कर सकते है ।

अनाहत (हृदय) में – सिज्जंस

विशुद्ध (कंठ) में – वासुपुज्जं च

आज्ञा (भ्रूमध्य) में– विमल

ब्रह्मरंध्र (मस्तिक) में – मणतं

करोड़ रज्जु में– च जिनं

तीसरा वलय

मूलाधार (गुदा) में – धम्मं

स्वाधिष्ठान (लिंग) में – संतिं च वंदामि

मणिपुर (नाभी) में – कुंथुं

अनाहत (हृदय) में – अरं च

विशुद्ध (कंठ) में – मल्लिं वंदे

आज्ञा (भ्रूमध्य) में – मुनिसुव्वयं

ब्रह्मरंध्र (मस्तिक) में – नमि

करोड़ रज्जु में – जिनं च

चौथा आधा वलय

मूलाधार (गुदा) में – वंदामि रिट्ठ नेमिं

स्वाधिष्ठान (लिंग) में – पासं तह

मणिपुर (नाभी) में – वद्धमाणं च

इस प्रकार साडे तीन वलय में २४ तीर्थंकर का ध्यान काउस्सग्ग के समय में कर सकते है । अभ्यास से न्यास सरल हो सकता है ।

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